आग है जो सीने में
कुछ बात है मेहनत के पसीने में।
वो नारों के शोर बने,
धरने, जुलूस में होड़ बने।
कह कर, वे क्या करते हैं,
हम आइना दिखने का दम भरते है।
और वो बेहया है, अक्स की उसको परवाह नहीं,
इनसे ना पड़े पाला, ऐसा निर्वाह नहीं।
हक़ बाट पर सब लड़ते है ,
इस बात का नफा वो भरते हैं।
फ़र्ज़-ओ-ईमान की बातें, बेबुनियाद यहाँ,
ये तो पुरखों की भूली हुई सौगात यहाँ।
ग़र अपने वजूद का ख्याल कर ले हम,
जो करते हैं, वो फ़िज़ूल तो नहीं सवाल कर ले हम।
आखिर जिस बात में अपनी तहज़ीब नहीं वो गैर है
और जो अपना था शुरू से, उसका इस्तकबाल कर लें हम ।
कुछ बात है मेहनत के पसीने में।
वो नारों के शोर बने,
धरने, जुलूस में होड़ बने।
कह कर, वे क्या करते हैं,
हम आइना दिखने का दम भरते है।
और वो बेहया है, अक्स की उसको परवाह नहीं,
इनसे ना पड़े पाला, ऐसा निर्वाह नहीं।
हक़ बाट पर सब लड़ते है ,
इस बात का नफा वो भरते हैं।
फ़र्ज़-ओ-ईमान की बातें, बेबुनियाद यहाँ,
ये तो पुरखों की भूली हुई सौगात यहाँ।
ग़र अपने वजूद का ख्याल कर ले हम,
जो करते हैं, वो फ़िज़ूल तो नहीं सवाल कर ले हम।
आखिर जिस बात में अपनी तहज़ीब नहीं वो गैर है
और जो अपना था शुरू से, उसका इस्तकबाल कर लें हम ।