बाॅलीवूडी इश्क मुहौब्बत
क्रीकेट बुखार से मीडीया भरदी थी।
तुमने रखी आँखे चकाचौंध, रहमत।
काशमीरी झुलसती आहें, नज़रअंदाज़ करदी थीं?
रलिफ, चलिफ, गलिफ के नारे
मसजिदों से गूँजते, वो तड़पते सुनते रहे।
और हम बेख़बर से, बाखुशी के मारे
अपने (2) पसंदीदा ख़ान चुनते रहे।
साल गुज़र गए दो करीब
सुद ली ना थी अबतक किसी ने
याद आए भी तो नवाज़-ए-गरीब,
बाबरी क्या गिरी, मुसलमाँ आज भी पीटते सीने।
ये 90 का दर्द, हर 19 जनवरी
दूना होता चला गया, ऊमीदें सर पटकती रही।
कभी माचिस जलाया, कभी मनाई 14 फरवरी।
अनसुनी चींखें, दील्ली में भटकती रही।
हूरो के दर पे दस्तक को
हूरीयत, काशमीर में उबालती रही।
फारूख, ग़ुलाम, मुफ्ती महबूबा सब को,
भारत की गरीब जनता पालती रही।।
90 के दशक से आज तक
किसी की चुप्पी, कीसी का झूठ।
अन्नतनाग से, इस्लामाबाद तक,
तुम्हारे पाप के सिलसिले अटूट ।