बिस्मिल पुनर्जन्म
मेरे लिखित कविताएँ और कहानियाँ जो मातृभूमि के लिए मेरी श्रद्धांजलि है और कुछ विचार हमेशा सोच में रखने के लिए!
सोमवार, 14 अप्रैल 2025
मेरे लिए काफी है , पर !
बुधवार, 24 जुलाई 2024
सच्चाई और अच्छाई
सच्चाई की हमेशा जीत होती है !
फिर भी झूठ की बड़ी खरीद होती है !!
सामूहिक सच, व्यक्तिगत सच, सारे अलग अलग !
सब आपस में उलझे हुए, अच्छाई के आंसू गए छलक !!
सत्य वही जिसका प्रमाण के साथ सत्यापन हो !
चाहे झूठे सारे साक्ष्य उसके, जैसे विज्ञापन हो !!
इस द्युत से बचकर मर्यादित अच्छाई हार जाती है !
सच होने की होड़ में झूठ अच्छाई को पछाड़ जाती है !!
जब लोग डरकर दुबक लें, अच्छाई से किनारा करें,
हिंसा मान कर, आत्मरक्षा और प्रतिकार को दुत्कारा करें !!
तब बेसहारा अच्छाई अपना सच साबित कर नहीं पाती!
अच्छे लोगो के अकर्मण्य होने से वो लड़ नहीं पाती !!
प्रत्यक्ष को भी भ्रम ना होने का, सच होने का प्रमाण चाहिए !
अच्छाई को सच्चाई बनाने के किये कई बलिदान चाहिए !!
अब तो समझ जाओ, जीतने के लिए पहले लड़ना ज़रूरी है !
कभी कभी, ज़िंदा हो तुम ये बताने के लिए मरना ज़रूरी है !!
रविवार, 23 जून 2024
धरे के धरे
नैटो की सदस्यता, यु एन ओ में वीटो है !
स्वतंत्र विदेश निति में, आज का मार्शल टीटो है !
बस एक गलती और, चारो ओर आग और धुआँ है !
कालनेमि को गले लगाया, मनो कालकूट विष छुआ है !!
आसमान से उत्तरी थी जो , स्वीडेन में जलना जारी है !
लन्दन की सड़कों का हाल, अंग्रेज़ बालाओं पे भरी है !!
आस पास के घटनाओ को कर अनदेखा, रहा वो खड़े के खड़े !
अपना देश जल गया, परमाणु बम्ब रह गए धरे के धरे !!
सत्तावन में तिरपन ऐसे, जो भाई भाई को काट रहे !
एक उम्मा के कई खलीफा, मज़हब बन्दर बाट सहे !!
हम उनके विक्षुप्तों को, शरणार्थी मानते रहे।
और वे संगठित होकर, कानून शरिया मांगते रहे !!
शार्ली हेब्दो ने मारी थी, व्यंग की छोटी सी पिचकारी !
लहू के फव्वारे छूटे, बरसाए बंदूकों से चिंगारी !!
सबका साथ, सबका विकास, ऐसे बकवास बंद हो ज़रूरी है !
उनकी कटार तुम्हारी गर्दन, बस एक मौके की दूरी है !!
शुक्रवार, 17 मई 2024
ज़माना बदल गया
कांधे लटका लाये, ख़ैरात में आई अवार्डों की झोली !!
मौन जुलूस का ड्रामा, मोमबत्ती, भावनात्मक गुदगुदी !
आसिफा के अचानक पैदा हुए रिश्तेदारों, समूल गए क्या ?
तुम्हारी एक बेटी मंदसौर में भी थी भूल गए क्या?
ये इफ्तारी में खाये गोश्त का कैसा क़र्ज़ है तुमपर!
बाटकर विरोध तुम करो, फिरकापरस्ती की तोहमत हमपर !!
सौ फीसदी अछ्छा या बुरा कुछ भी होता नहीं !
वो बात सामने क्यों आये जिससे तुमको नफा नहीं !!
कलम वो शस्त्र है, जो सोच बदल कर रख देती !
सच तो उजागर होके रहेगा, चाहे झूठ उसे ढक देती !!
अन्धकार में धकेलने की मनशा व्यर्थ जाएगी !
मेरी जलती अस्थियों से भी सृष्टि प्रकाश पायेगी !!
जीस कलम का दुरउपयोग कर तुमने छला है
वो ही सत्य के हाथों से , तुमको कहीं सबला है !!
विसंगतियाँ, मतभेद छोड़, सुजन संगठित होने लगे हैं !
बुद्धिजीवी
पर के जीवन का रस खींच जीवन पाए जो
जीव विज्ञानं में परजीवी की संज्ञा पाये वो !
अनर्थ को बढ़ावा दे,भ्रम फैलाये जो
समाजविज्ञान में बुद्धिजीवी क्यों कहलाये वो?
बंध हो फँसी की सज़ा, ऐसे चल नहीं सकता
मनुष्यों के मूलाधिकार, ऐसे कोई छल नहीं सकता।
परन्तु, जो नशाग्रत और आतंकग्रस्त कर प्राण छीने
उसको हम मनुष्यों की श्रेणी में कैसे गिने?
किसी को धर्म प्रेम किसी को प्यारी जाती
किसी की वर्गों में बाँटकर, समाज तोड़ने की है ख्याति।
किसी को कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ चाहिए माल (धन),
खुद का शासन खुद पर कर लो, गणतंत्र का हाल।
"नोटा " को अगर बहुमत आये, क्या गणतंत्र होगा फेल?
दो चार जितने वोट पड़ेंगे, उसमे ही चलेगा गिनती वाला खेल।
मैं कॉन्ट्रैक्ट अधिकारी, तू है ठेकेदार, अपना बन्दर बाँट का मेल
नीलामी की शुरुवात हुई , पोस्टर छपे है, " भारतमाता सेल " !!
शुक्रवार, 19 मई 2023
महाभारत द्वितीय
जीवन यहाँ द्वापर सा नहीं सरल है,
कालकूट से कहिं अधिक गरल है !
मर्यादाएं ताक पर नहीं , पस्त हो चुकीं !
द्रौपदी स्वयं नग्न नाच में मस्त हो चुकीं !!
द्युत आजकल आए का साधन है!
लज्जा कूड़ेदान में, लोलुपता श्रृंगार प्रसाधन है !!
धर्मशास्त्र कहाते मिथ्याचरण की गाथा !
लम्पट यहाँ कृष्ण कहाए, व्यभिचारिणी राधा !!
राम जहाँ पत्नी उत्पीड़क, रावण चरित्र का धनी !
राहु आकाँक्षाओं का स्वामी, दुष्ट कहलाते शनी !!
हर पग चक्रव्यूह से घिरा, रण छल निरंतर है !
क्या अंतर, क्या बहार, सब कुरुक्षेत्र कहाँ अंतर है ?
पक्ष धर्म का यहाँ पड़ा पड़ा मार खा रहा !
अधर्म पक्ष युध्य से दूर बैठकर, दावतें उड़ा रहा !!
पहले समाज, फिर परिवार सब खोते चले जा रहे!
ज्योतिरसोम: तमोगमय हो, अस्तित्व से दूर होते जा रहे !!
ज्ञान गीता का बस बगल में दबा है !
काम पाखंड में खुद को खपा रखा है !!
चेतना जागे ना, थपकियाँ मार सुला देते हैं !
ईशर याद आये भूले बिसरे, दोगलेपन से भुला देते हैं !!
अब धर्म की स्थापना से, प्रलय ही उपचार बचा !
कर्त्तव्य की समझ गई, दंभाधीन अधिकार बचा !!
इन्द्रियों के सुख आनंद तक, मानवता की दृष्टि है!
द्वैत अद्वैत सब रहे धरे, सत्य केवल नश्वर सृष्टि है !!
शनिवार, 15 अप्रैल 2023
दौर बदल रहा है।
राष्ट्र सनातन अपनीओज की खोज में लगा है