नूह, नागपुर, मुर्शिदाबाद,
पुलवामा हो या पहलगाम !
कुछ अंतर नहीं है इनमे,
सब अल जिहाद के घाव तमाम !!
भत्सनाओं का समय निकल गया,
अबतो शुरू करो इनको मिटाना !
और इनके जो है सारे सहकारी
बुलडोज़र तले हो इनका ठिकाना !!
विक्सित भारत है स्वप्न तुम्हारा
गज़वा -ए - हिन्द उनको चाहिए !
सिमी, प.फ.आई , आई. एम बनाने
मिलते है कहाँ से जो लोग चाहिए ?
वो जो है, उनको वही कहना सीखो
मिमयाना छोडो, अब शेर बनकर जीना है।
अल जिहाद से युद्ध की हो चुकी घोषणा
अब भिड़ाकर देखेंगे बारूदों से फौलादी सीना !!
जन्नत के परवानो से लड़ना है तुमको
जानो, इस युद्ध के है आयाम कई!
शोणित से लाल होगी गलियां सभी
चुकाने पड़ेंगे हमको भी दाम कई !
इस युद्ध को परिणाम देने,
जिहाद के निर्गत तक जाना होगा !
संक्रमन सफाई प्रयाप्त नहीं, उद्गम तक जाकर,
समाधान का अभियंता बन जाना होगा।
अब इस रण में, जो भी विघ्न बनेगा
गांडीव से शर उस ओर भी जाएगा।
गंगा-जमुनी तहजीब का चूरन,
जिसने अब चखाया, वो पछताएगा।