जलधी पार जाने का विचार
उसपर उल्टे पतवार, मूर्खता कहलाती है ।
हमको इसकी सलाह क्यों दी जाती है ?
क्यारियों में अलग अलग फूल, अच्छे है।
बीच में कुछ शूल भरे खार पतवार के गुच्छे है।
इनको अगर मैं उखाड़ दूं, ग़लत क्या है ?
आखिर, वन और उपवन में भेद से गफलत क्या है?
आलोक का ना होना ही तो तम है
इनमें समन्वय होना बस एक भ्रम है,
इस भ्रम को जीवन शैली का आधार बनाना
अराजकता की ओर धकेलने का है बहाना !!
समय भस्म के कब्रों में कर्म छुपा ना पाओगे।
अपने अक्स से सामना होगा, शर्म छुपा ना पाओगे !!
ये वैश्विक होने का , टूट चुका है भंगुर ताशगर ।
अपनी चाल भूल चुके, नकल उतार तुम बने द्विचर !!