अगर हाथ से मिले हाथ
तो, मिलाते चलो जज़्बात।
व्यक्ति से व्यक्ति जुड़ें, व्यक्ति से समाज,
समाज से फिर राष्ट्र जुड़ें, ये पुरखों की सौगात।
मुझसे पहले आप आओ, आपसे पहले परिवार
परिवार से पहले समाज आये, उससे भी आगे देश
जीवन के हर फैसले में, इस क्रम को जारी रखें
मैं को अंतिम में जगह मिले, अगर रहे कुछ शेष।
संस्कृती के आदान प्रदान से
कभी भी रहा हमको बैर नहीं
उड़ने को पर मिलने पर,
महत्व कभी खोते पैर नहीं।
उठे सवाल अपनी परम्पराओं पर
बेशक उसकी जांच करो।
पर उद्देश्य क्या गैरों की इसमें
उसकी भी तो आंच करो।
यही भर भर उठाली तुमने
अंध भक्ति से जिनके जीवन मूल्य।
क्या विवेक तराज़ू में तौल के देखा
क्या है वो ग्रहण योग्य या समतुल्य?
वो समाज, संपर्क और संसाधनों को
एक मात्र अनुबंधों से जुड़ा हुआ मानते है।
अनुबंध विच्छेद अपराध से दंड का भय
इसको पारस्परिक सम्मान से ऊचा मानते है।
आतंक का सरमाया चहुँ ओर है और
कारन यही की सम्मान कहीं दीखता नहीं।
भ्रष्टाचार नित्य जीवन शैली है मनुज की,
अनुबंधों की इस व्यवस्था में क्या बिकता नहीं।?
मैं अनुबंधित हूँ संविधान से, सो मतदान है,
वरना सच बताओ, गणतंत्र का सम्मान है ?
मैं अनुबंधित हूँ नगरपालिका से, सो वास है,
नामांकित है जन्म, वरना क्या पहचान है ?
मेरा आधार मेरी संस्कृति से है,
नाकि सरकार से जारी किसी कार्ड से?
मै आर्य हूँ , आर्यावर्त से, यूँ जाना जाऊं
या कीस घर, किस मुहल्ला, किस वार्ड से।
तो, मिलाते चलो जज़्बात।
व्यक्ति से व्यक्ति जुड़ें, व्यक्ति से समाज,
समाज से फिर राष्ट्र जुड़ें, ये पुरखों की सौगात।
मुझसे पहले आप आओ, आपसे पहले परिवार
परिवार से पहले समाज आये, उससे भी आगे देश
जीवन के हर फैसले में, इस क्रम को जारी रखें
मैं को अंतिम में जगह मिले, अगर रहे कुछ शेष।
संस्कृती के आदान प्रदान से
कभी भी रहा हमको बैर नहीं
उड़ने को पर मिलने पर,
महत्व कभी खोते पैर नहीं।
उठे सवाल अपनी परम्पराओं पर
बेशक उसकी जांच करो।
पर उद्देश्य क्या गैरों की इसमें
उसकी भी तो आंच करो।
यही भर भर उठाली तुमने
अंध भक्ति से जिनके जीवन मूल्य।
क्या विवेक तराज़ू में तौल के देखा
क्या है वो ग्रहण योग्य या समतुल्य?
वो समाज, संपर्क और संसाधनों को
एक मात्र अनुबंधों से जुड़ा हुआ मानते है।
अनुबंध विच्छेद अपराध से दंड का भय
इसको पारस्परिक सम्मान से ऊचा मानते है।
आतंक का सरमाया चहुँ ओर है और
कारन यही की सम्मान कहीं दीखता नहीं।
भ्रष्टाचार नित्य जीवन शैली है मनुज की,
अनुबंधों की इस व्यवस्था में क्या बिकता नहीं।?
मैं अनुबंधित हूँ संविधान से, सो मतदान है,
वरना सच बताओ, गणतंत्र का सम्मान है ?
मैं अनुबंधित हूँ नगरपालिका से, सो वास है,
नामांकित है जन्म, वरना क्या पहचान है ?
मेरा आधार मेरी संस्कृति से है,
नाकि सरकार से जारी किसी कार्ड से?
मै आर्य हूँ , आर्यावर्त से, यूँ जाना जाऊं
या कीस घर, किस मुहल्ला, किस वार्ड से।
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