राम नाम की धुनि रमाकर
या, चिता भस्म से नाहाकर
वळख्ळ या दिगंबर धर, वैरागी बन जाना
सत्य की खोज, मेरे लिए काफी है, पर !
प्राचीन गुरुओं की वाणी सुन
मैं भी लून, मोक्ष की राह चुन
हाहाकार कोलाहल से दूर जाकर
एकांत का प्रयास, मेरे लिए काफी है, पर !
निश्लीपत, व निष्क्रिय रहकर
आजीविका के लिए सब सहकर
संवेदनहीन हो जाऊं ज्यों प्रस्तर
मेरे लिए काफी है , पर !
कमर्फल एवं समयचक्र की सत्यता जानता हूँ !
धर्म जय को अधर्म का नाश आवश्यक मानता हूँ !
मोक्ष जीवन का लक्ष्य अंतिम , मेरे लिए काफी है , पर !
प्रतिकार ना करना, क्या चेतना को दे पायेगा वो स्तर ??
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