बाहर के आतंकी हो
या अंदर के दंगाई !
एक भाषा एक ही लक्ष
एक सी झंडों की रंगाई !!
सिंघासन जो राजदंड का करे प्रहार
बुद्धिजीवी चींखे, लूटा मानवाधिकार !
पहले किया निहत्था, फिर हुआ जनसंहार
सनातन को विधिवत जीने का मिलता उपहार !!
नस्लों में विषैले विचार बोने वाले
सम्मान निधि पा जीवन रहे गुज़ार।
अधर्म ग्रन्थ सीखाने वालों को,
हम धर्मप्रचारक पुकार रहे।।
उनपे फ़र्ज़ है क़त्ल तुम्हारा, और
तुम चादर चढाने चले मज़ार।
यात्रा की शोभा है फूटा हुआ हिन्दू सर
तुम ही पीड़ित, तुमपर ही धिक्कार !!
व्यवस्था का आभाव है, या
शत्रु प्रायोजित अत्याचार !
तय करने में निष्फल तुम्हारी सत्ता
नित्य विधि द्वारा भी छाला जाये अधिकार !!
शाकाहारी सिघों का जंगल
मुट्ठीभर वन-स्वानो से घिरे हुए।
शांति की भिक्षा व्यर्थ, मिमिया के मांग रहे,
देकर धर्म-संकट की दुहाई, स्व नजरों से गिरे हुए।
मेरे लिखित कविताएँ और कहानियाँ जो मातृभूमि के लिए मेरी श्रद्धांजलि है और कुछ विचार हमेशा सोच में रखने के लिए!
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025
धर्म संकट
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