शनिवार, 21 मई 2022

हिन्द की रूह !

जैसे डूबता हुआ सूरज,

आसमान में लालीमा भर देता है।

बुझते हुए दीपक भी अपनी,

आभा से घर रौशन कर देता है।


ठीक उसी तरह जागती हुई हिन्द की रूह,

हर आवाज़ नारों में तबदील अब।

हर तरफ़ लोगों का हुजूम शामिल सब,

टूटने से पहले उसकी आँखें खुली तब।


जैसे झूठ का पर्दाफाश हुआ,

उम्मीदें टूटी, ऐतबार घटा।

गुस्सा उसकी भीड़ सा बना दिया,

मासूमों का जुर्मवालों पर हिसाब बना।


दिशाएँ नहीं दी गई, तब भी ताकत जहर है।

हर किसी पर ये अज़ाब, कहर है।

इस भट्टी में तप कर ही निखारना होगा,

अंकुरित होना है? बीज बन बिखरना होगा।


वक़्त ऐसे ही दौर से गुज़र कर बदलता है।

कुछ नया बनने से पहले, हर शय जलता है।

टूटते हैं ऊँचे दरख्त, तिनकों से चमन बनता है,

जैसे हर बार टूटता है हिन्द, फिर नया वतन बनता है।

बुधवार, 16 मार्च 2022

90 और तुम्हारे पाप

बाॅलीवूडी इश्क मुहौब्बत
क्रीकेट बुखार से मीडीया भरदी थी।
तुमने रखी आँखे चकाचौंध, रहमत।
काशमीरी झुलसती आहें, नज़रअंदाज़ करदी थीं?

रलिफ, चलिफ, गलिफ के नारे
मसजिदों से गूँजते, वो तड़पते सुनते रहे।
और हम बेख़बर से, बाखुशी के मारे
अपने (2) पसंदीदा ख़ान चुनते रहे।

साल गुज़र गए दो करीब
सुद ली ना थी अबतक किसी ने
याद आए भी तो नवाज़-ए-गरीब,
बाबरी क्या गिरी, मुसलमाँ आज भी पीटते सीने।

ये 90 का दर्द, हर 19 जनवरी
दूना होता चला गया, ऊमीदें सर पटकती रही।
कभी माचिस जलाया, कभी मनाई 14 फरवरी।
अनसुनी चींखें, दील्ली में भटकती रही।

हूरो के दर पे दस्तक को
हूरीयत, काशमीर में उबालती रही।
फारूख, ग़ुलाम, मुफ्ती महबूबा सब को,
भारत की गरीब जनता पालती रही।।

90 के दशक से आज तक
किसी की चुप्पी, कीसी का झूठ। 
अन्नतनाग से, इस्लामाबाद तक, 
तुम्हारे पाप के सिलसिले अटूट ।