शुक्रवार, 19 मई 2023

महाभारत द्वितीय

जीवन यहाँ द्वापर सा नहीं सरल है,

कालकूट से कहिं अधिक गरल है !

मर्यादाएं ताक पर नहीं , पस्त हो चुकीं !

द्रौपदी स्वयं नग्न नाच में मस्त हो चुकीं !!


द्युत आजकल आए का साधन है!

लज्जा कूड़ेदान में, लोलुपता श्रृंगार प्रसाधन है !!

धर्मशास्त्र कहाते मिथ्याचरण की गाथा !

लम्पट यहाँ कृष्ण कहाए, व्यभिचारिणी राधा !!


राम जहाँ पत्नी उत्पीड़क, रावण चरित्र का धनी !

राहु आकाँक्षाओं का स्वामी, दुष्ट कहलाते शनी !!

हर पग चक्रव्यूह से घिरा, रण छल निरंतर है !

क्या अंतर, क्या बहार, सब कुरुक्षेत्र कहाँ अंतर है ?


पक्ष धर्म का यहाँ पड़ा पड़ा मार खा रहा !

अधर्म पक्ष युध्य से दूर बैठकर, दावतें उड़ा रहा !!

पहले समाज, फिर परिवार सब खोते चले जा रहे!

ज्योतिरसोम: तमोगमय हो, अस्तित्व से दूर होते जा रहे !!


ज्ञान गीता का बस बगल में दबा है !

काम पाखंड में खुद को खपा रखा है !!

चेतना जागे ना, थपकियाँ मार सुला देते हैं !

ईशर याद आये भूले बिसरे, दोगलेपन से भुला देते हैं !!


अब धर्म की स्थापना से, प्रलय ही उपचार बचा !

कर्त्तव्य की समझ गई, दंभाधीन अधिकार बचा !!

इन्द्रियों के सुख आनंद तक, मानवता की दृष्टि है!

द्वैत अद्वैत सब रहे धरे, सत्य केवल नश्वर सृष्टि है !!