द्वापर के अंत सा, समय सर्प फुंकार रहा।
कुरुक्षेत्र सा सज्जित लेह, रण को ललकार रहा।।
फिर से रख गांडीव, दुविधा से ग्रस्त ना होना।
इस बार खलेगा, तूणीर में दिव्यास्त्रों का ना होना।।
होंगे ऐसे भी चार्वाक जो, अहिंसा परमोधर्म: कहेंगे।
शत्रु के मुखपार्त्र बन, कुछ तो जेब अपनी गर्म करेंगे।।
क्षत्रिय धर्म पुकारे, जनहित के उचित कार्य करो।
मनुज जीवन पर संकट है, धर्मयुद्ध जा आर्य लड़ो।।
राष्ट्रों के बीच की सीमारेखा, विवाद बहुत छोटा है !
जो है प्रतिपक्ष, वो मानवता के इतिहास मे खोटा है !!
इस बार परीनाम का न सोचो, उद्देश्य आधार चुनो!
धर्मो रक्षे रक्षित:!, आततायी का प्रतीकार चुनो!!
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