शनिवार, 12 जुलाई 2025

Flaud Teri Shiksha Neeti

कहां आर्यभट्ट, कहां ऋषी कणाद ?
कहां ब्रम्हगुप्त, कहां मुनी अगस्त?
ग्रैजुएट, मास्टरस कितने पढ़े लिखे
एक मैथ्स की प्रौबलेम, सबको दस्त! 

ज़िरो दिया हमने, दिया दशम्ळव,
लगे रट्टा मार, मरे साईंस का लव!
त्रीकोणमिती देने वाले, थीटा पाई से डर गए!
लगा कैलकुलेटर हाथ, बंदे बिगड़ गए!!

फ्लौड (3) , तेरी शिक्षा नीती ! 
कहीं अच्छी थी अपनी, दिक्षा नीती !!

परमार का पता है, न मुक्तपीड़ का पता! 
शुश, पता न चले सोहेलदेव की कथा !!
भर भर के झूठ, ईतीहास के नाम परोसते रऔ! 
लालची लुटेरे पुर्वज सोच सोच कोसते रऔ !

विद्या ददाती विनयम् , विनए ददाती  पात्रताम् !
पंद्रह से सत्रह साल की पढ़ाई, मै निकला बेशरम !!
190 साल की लड़ाई, कोट पैंट टाई में गवाई !
संघर्ष ६१० साल का निरंतर, हमको नहीं पढाई ? 

फ्लौड (3) , तेरी शिक्षा नीती ! 
कहीं अच्छी थी अपनी, दिक्षा नीती !!

१२ साल की स्कूलिंग, ५ साल की इंजीनियरिंग
हम सब सारे हुक्म के गुलाम, बजट फेयरिंग !!
 






सोमवार, 5 मई 2025

युद्ध घोष

नूह, नागपुर, मुर्शिदाबाद,
पुलवामा हो या पहलगाम !
कुछ अंतर नहीं है इनमे, 
सब अल जिहाद के घाव तमाम !!

भत्सनाओं का समय निकल गया,
अबतो शुरू करो अब इनको मिटाना !
और इनके जो है सारे सहकारी
बुलडोज़र टेल हो इनका ठिकाना !!

 विक्सित भारत है स्वप्न तुम्हारा
गज़वा -ए - हिन्द उनको चाहिए !
सिमी, प.फ.आई , आई. एम बनाने 
मिलते है कहाँ से जो लोग चाहिए ? 

वो जो है, उनको वही कहना सीखो
मिमयाना छोडो, अब शेर बनकर जीना  है।  
अल जिहाद से युद्ध की हो है चुकी घोषणा
अब भिड़ाकर देखेंगे बारूदों से फौलादी सीना !!

जन्नत के परवानो से लड़ना है 
जानो, इस युद्ध के है आयाम कई!
शोणित से लाल होगी गलियां 
चुकाने पड़ेंगे हमको भी दाम कई !

इस युद्ध को परिणाम देने,
जिहाद के निर्गत तक जाना होगा !
संक्रमन सफाई प्रयाप्त नहीं, उद्गम ता जाकर,
समाधान का अभियंता बन जाना होगा। 


 


शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

धर्म संकट

बाहर के आतंकी हो 
या अंदर के दंगाई !
एक भाषा एक ही लक्ष 
एक सी झंडों की रंगाई !!

सिंघासन जो राजदंड का करे प्रहार 
बुद्धिजीवी चींखे,  लूटा मानवाधिकार !
पहले किया निहत्था, फिर हुआ जनसंहार 
सनातन को विधिवत जीने का मिलता उपहार !!

नस्लों में विषैले विचार बोने वाले
सम्मान निधि पा जीवन रहे गुज़ार। 
अधर्म ग्रन्थ सीखाने वालों को,
हम धर्मप्रचारक पुकार रहे।। 

उनपे फ़र्ज़ है क़त्ल तुम्हारा, और 
तुम चादर चढाने चले मज़ार।  
यात्रा की शोभा है फूटा हुआ हिन्दू सर
तुम ही पीड़ित, तुमपर ही धिक्कार !!

व्यवस्था का आभाव है, या 
शत्रु प्रायोजित अत्याचार !
तय करने में निष्फल तुम्हारी सत्ता
नित्य विधि द्वारा भी छाला जाये अधिकार !!
 
शाकाहारी सिघों का जंगल 
मुट्ठीभर वन-स्वानो से घिरे हुए।
शांति की भिक्षा व्यर्थ, मिमिया के मांग रहे,  
देकर धर्म-संकट की दुहाई, स्व नजरों से गिरे हुए।  

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

मेरे लिए काफी है , पर !

राम नाम की धुनि रमाकर 
या, चिता भस्म से नाहाकर
वळख्ळ या दिगंबर धर, वैरागी बन जाना
सत्य की खोज, मेरे लिए काफी है, पर ! 

प्राचीन गुरुओं की वाणी सुन
मैं भी लून, मोक्ष की राह चुन
हाहाकार कोलाहल से दूर जाकर
एकांत का प्रयास, मेरे लिए काफी है, पर ! 

निश्लीपत, व निष्क्रिय रहकर 
आजीविका के लिए सब सहकर 
संवेदनहीन हो जाऊं ज्यों प्रस्तर 
मेरे लिए काफी है , पर !

कमर्फल एवं समयचक्र की सत्यता जानता हूँ !
धर्म जय को अधर्म का नाश आवश्यक मानता हूँ  !
मोक्ष जीवन  का लक्ष्य अंतिम , मेरे लिए काफी है , पर !
प्रतिकार ना करना, क्या चेतना को दे पायेगा वो स्तर ??