सोमवार, 14 मई 2012

भारत का प्राचीन गणतंत्र

हम  सभी  जानते   हैं   पिछले  ८०००  सालों से  भारतवर्ष  एक  राजतान्त्रिक देश  रहा  है । पुराणों  के  अनुसार  सत्य युग  से  ही  प्रजापालक  या  चक्रवर्ति सम्राट  ही  राज   किया करते  थे। समय के साथ भारतवर्ष का नक्षा बदलता रहा, ये भूखंड कभी एक देश नहीं रहा, छोटे छोटे साम्राज्यों में विभाजित था, पर इन्हें बंधती थी इनकी धार्मिक विशवास! देश में गुरुकुल और आश्रम बिना किसी साम्राज्य सीमा के अधीन आये स्वतंत्र  ही रहते थे, गुरु सबके पूजनीय थे, गुरुकुल और गुरु ही राजा के स्वार्थ पर अंकुश लगते थे !

समय बदलता गया, राजा गुरुकुल की अवहेलना करने लगे, गुरुकुलों ने राजवंशों को शिक्षा देने से मना करने लगे । विवेकवान राजाओं ने गुरुकुलों से संधि की । एक व्यवस्था बनी, गुरुकुल करने लगी मंत्री सामंतों का चयन योग्यता के मापदंड से|
 चूँकि, गुरुकुल के आचार्य समाज के उच्चवर्ण से उठकर आये लोगो का समूह था | मोर्य काल एवं गुप्त काल के आते आते वैदिक विचार धरा को त्याग कर, शाशकों ने बोउध्य धर्म को अपना लिया था |  इस व्यवस्था से दुसरे वर्ण के जाती के धर्म के लोग जुड़ते चले गए । और ये समूह समाज के शिक्षित वर्ग का समूह बन गया।

अब जहाँ देश के अन्दर विद्यमान हर राज्य के मंत्रिमंडल को देश का शिक्षित वर्ग चुनने लगे उसे आप गणतंत्र कहेंगे या राजतन्त्र ?  वर्तमान में जिस गणतंत्र इ हम है क्या वो गणतंत्र हमारे इस प्राचीन गणतंत्र से बेहतर है? या हम किसी अव्यवस्था में फसें हुए है, और गणतांत्रिक देश होने का भरम पाल रहें है !?

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