एक तरफ लोभ का दानव !
एक तरफ संक्रमित मानव ! !
एक तरफ पीड़ित जन भी !
एक तरफ मेरा व्यथित मन भी ! !
निदान को तैयार हम !
संचार, महेंद्रगिरी सा बना स्तम्भ ! !
पीठ कुम्भ सा दिए न्याय भी !
जनता हुई वसुखी का पर्याय भी ! !
अब मंथा जायेगा समाज समुद्र सा !
उथलेगा सबकुछ, छुद्र अतिचुद्र सा ! !
स्वयं हलाहल हुआ है प्रकट !
जीवन पर घनघोर है संकट ! !
शिव कृपा को नेत्र तरसते है !
मेरे, सामर्थ हीनता पे नेत्र बरसते है ! !
ये विष पान करने की किस्मे है क्षमता ?
देखना है, खुदको शिव रंग में कौन है रंगता ! !
एक तरफ संक्रमित मानव ! !
एक तरफ पीड़ित जन भी !
एक तरफ मेरा व्यथित मन भी ! !
निदान को तैयार हम !
संचार, महेंद्रगिरी सा बना स्तम्भ ! !
पीठ कुम्भ सा दिए न्याय भी !
जनता हुई वसुखी का पर्याय भी ! !
अब मंथा जायेगा समाज समुद्र सा !
उथलेगा सबकुछ, छुद्र अतिचुद्र सा ! !
स्वयं हलाहल हुआ है प्रकट !
जीवन पर घनघोर है संकट ! !
शिव कृपा को नेत्र तरसते है !
मेरे, सामर्थ हीनता पे नेत्र बरसते है ! !
ये विष पान करने की किस्मे है क्षमता ?
देखना है, खुदको शिव रंग में कौन है रंगता ! !
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