गुरुवार, 5 जुलाई 2018

ज़माना बदल गया

छाती पीटते तथाकथित लेखकों की टोली !
कांधे  लटका लाये, ख़ैरात में आई अवार्डों की झोली !!
मौन जुलूस का ड्रामा, मोमबत्ती, भावनात्मक गुदगुदी !
ज़माना बदल गया, अब इनकी नहीं ले रहा कोई सुधी।

आसिफा के अचानक पैदा हुए रिश्तेदारों, समूल गए क्या ?
तुम्हारी एक बेटी मंदसौर में भी थी भूल गए क्या?
ये इफ्तारी में खाये गोश्त का कैसा क़र्ज़ है तुमपर!
बाटकर विरोध तुम करो, फिरकापरस्ती की तोहमत हमपर !!

सौ फीसदी अछ्छा या बुरा कुछ भी होता नहीं !
वो बात सामने क्यों आये जिससे तुमको नफा नहीं !!
कलम वो शस्त्र है, जो सोच बदल कर रख देती !
सच तो उजागर होके रहेगा, चाहे झूठ उसे ढक देती !!

अन्धकार में धकेलने की मनशा व्यर्थ जाएगी !
मेरी जलती अस्थियों से भी सृष्टि प्रकाश पायेगी !!
जीस कलम का दुरउपयोग कर तुमने छला है
वो ही सत्य के हाथों से , तुमको कहीं सबला है !!

विसंगतियाँ, मतभेद छोड़, सुजन संगठित होने लगे हैं !
युवा आक्रोश सुमन को, सुबुद्धि से पिरोने लगे है !!
युक्ति , शक्ति, कूटनीती, सबका धर्म हेतू योगदान होगा !
प्रीथ्वीराज से प्रेरित थे, अब विष्णुगुप्त से पहचान होगा !!




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें