सोमवार, 5 मई 2025

युद्ध घोष

नूह, नागपुर, मुर्शिदाबाद,
पुलवामा हो या पहलगाम !
कुछ अंतर नहीं है इनमे, 
सब अल जिहाद के घाव तमाम !!

भत्सनाओं का समय निकल गया,
अबतो शुरू करो अब इनको मिटाना !
और इनके जो है सारे सहकारी
बुलडोज़र टेल हो इनका ठिकाना !!

 विक्सित भारत है स्वप्न तुम्हारा
गज़वा -ए - हिन्द उनको चाहिए !
सिमी, प.फ.आई , आई. एम बनाने 
मिलते है कहाँ से जो लोग चाहिए ? 

वो जो है, उनको वही कहना सीखो
मिमयाना छोडो, अब शेर बनकर जीना  है।  
अल जिहाद से युद्ध की हो है चुकी घोषणा
अब भिड़ाकर देखेंगे बारूदों से फौलादी सीना !!

जन्नत के परवानो से लड़ना है 
जानो, इस युद्ध के है आयाम कई!
शोणित से लाल होगी गलियां 
चुकाने पड़ेंगे हमको भी दाम कई !

इस युद्ध को परिणाम देने,
जिहाद के निर्गत तक जाना होगा !
संक्रमन सफाई प्रयाप्त नहीं, उद्गम ता जाकर,
समाधान का अभियंता बन जाना होगा। 


 


शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

धर्म संकट

बाहर के आतंकी हो 
या अंदर के दंगाई !
एक भाषा एक ही लक्ष 
एक सी झंडों की रंगाई !!

सिंघासन जो राजदंड का करे प्रहार 
बुद्धिजीवी चींखे,  लूटा मानवाधिकार !
पहले किया निहत्था, फिर हुआ जनसंहार 
सनातन को विधिवत जीने का मिलता उपहार !!

नस्लों में विषैले विचार बोने वाले
सम्मान निधि पा जीवन रहे गुज़ार। 
अधर्म ग्रन्थ सीखाने वालों को,
हम धर्मप्रचारक पुकार रहे।। 

उनपे फ़र्ज़ है क़त्ल तुम्हारा, और 
तुम चादर चढाने चले मज़ार।  
यात्रा की शोभा है फूटा हुआ हिन्दू सर
तुम ही पीड़ित, तुमपर ही धिक्कार !!

व्यवस्था का आभाव है, या 
शत्रु प्रायोजित अत्याचार !
तय करने में निष्फल तुम्हारी सत्ता
नित्य विधि द्वारा भी छाला जाये अधिकार !!
 
शाकाहारी सिघों का जंगल 
मुट्ठीभर वन-स्वानो से घिरे हुए।
शांति की भिक्षा व्यर्थ, मिमिया के मांग रहे,  
देकर धर्म-संकट की दुहाई, स्व नजरों से गिरे हुए।  

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

मेरे लिए काफी है , पर !

राम नाम की धुनि रमाकर 
या, चिता भस्म से नाहाकर
वळख्ळ या दिगंबर धर, वैरागी बन जाना
सत्य की खोज, मेरे लिए काफी है, पर ! 

प्राचीन गुरुओं की वाणी सुन
मैं भी लून, मोक्ष की राह चुन
हाहाकार कोलाहल से दूर जाकर
एकांत का प्रयास, मेरे लिए काफी है, पर ! 

निश्लीपत, व निष्क्रिय रहकर 
आजीविका के लिए सब सहकर 
संवेदनहीन हो जाऊं ज्यों प्रस्तर 
मेरे लिए काफी है , पर !

कमर्फल एवं समयचक्र की सत्यता जानता हूँ !
धर्म जय को अधर्म का नाश आवश्यक मानता हूँ  !
मोक्ष जीवन  का लक्ष्य अंतिम , मेरे लिए काफी है , पर !
प्रतिकार ना करना, क्या चेतना को दे पायेगा वो स्तर ??

बुधवार, 24 जुलाई 2024

सच्चाई और अच्छाई

सच्चाई की हमेशा जीत होती है !
फिर भी झूठ की बड़ी खरीद होती है !!
सामूहिक सच, व्यक्तिगत सच, सारे अलग अलग !
सब आपस में उलझे हुए, अच्छाई के आंसू गए छलक !!

सत्य वही जिसका प्रमाण के साथ सत्यापन हो ! 
चाहे झूठे सारे साक्ष्य उसके, जैसे विज्ञापन हो !!
इस द्युत से बचकर मर्यादित अच्छाई  हार जाती है !
सच होने की होड़ में झूठ अच्छाई को पछाड़ जाती है !!

जब लोग डरकर दुबक लें, अच्छाई से किनारा करें,
हिंसा मान कर, आत्मरक्षा और प्रतिकार को दुत्कारा करें !!
तब बेसहारा अच्छाई अपना सच साबित कर नहीं पाती!
अच्छे लोगो के अकर्मण्य होने से वो लड़ नहीं पाती !! 

प्रत्यक्ष को भी भ्रम ना होने का, सच होने का प्रमाण चाहिए !
अच्छाई  को सच्चाई बनाने के किये कई बलिदान चाहिए !!
अब तो समझ जाओ, जीतने के लिए पहले लड़ना ज़रूरी है !
कभी कभी, ज़िंदा हो तुम ये बताने के लिए मरना ज़रूरी है !! 

रविवार, 23 जून 2024

धरे के धरे

नैटो की सदस्यता, यु एन ओ  में वीटो है !
स्वतंत्र विदेश निति में, आज का मार्शल टीटो है !
बस एक गलती और, चारो ओर आग और धुआँ है !
कालनेमि को गले लगाया, मनो कालकूट विष छुआ है !!

आसमान से उत्तरी थी जो , स्वीडेन में जलना जारी है !
लन्दन की सड़कों का हाल, अंग्रेज़  बालाओं पे भरी है !!
आस पास के घटनाओ को कर अनदेखा, रहा वो खड़े के खड़े !
अपना देश जल गया, परमाणु बम्ब रह गए धरे के धरे !!

सत्तावन में तिरपन ऐसे, जो भाई भाई को काट रहे !
एक उम्मा के कई खलीफा, मज़हब बन्दर बाट सहे !!
हम उनके विक्षुप्तों को, शरणार्थी मानते रहे। 
और  वे संगठित होकर, कानून शरिया मांगते रहे !!

शार्ली हेब्दो ने मारी थी, व्यंग की छोटी सी पिचकारी !
लहू के फव्वारे छूटे, बरसाए बंदूकों से चिंगारी !!
सबका साथ, सबका विकास, ऐसे बकवास बंद हो ज़रूरी है !
उनकी कटार तुम्हारी गर्दन, बस एक मौके की दूरी है !! 



शुक्रवार, 17 मई 2024

ज़माना बदल गया

छाती पीटते तथाकथित लेखकों की टोली !
कांधे  लटका लाये, ख़ैरात में आई अवार्डों की झोली !!
मौन जुलूस का ड्रामा, मोमबत्ती, भावनात्मक गुदगुदी !
ज़माना बदल गया, अब इनकी नहीं ले रहा कोई सुधी।

आसिफा के अचानक पैदा हुए रिश्तेदारों, समूल गए क्या ?
तुम्हारी एक बेटी मंदसौर में भी थी भूल गए क्या?
ये इफ्तारी में खाये गोश्त का कैसा क़र्ज़ है तुमपर!
बाटकर विरोध तुम करो, फिरकापरस्ती की तोहमत हमपर !!

सौ फीसदी अछ्छा या बुरा कुछ भी होता नहीं !
वो बात सामने क्यों आये जिससे तुमको नफा नहीं !!
कलम वो शस्त्र है, जो सोच बदल कर रख देती !
सच तो उजागर होके रहेगा, चाहे झूठ उसे ढक देती !!

अन्धकार में धकेलने की मनशा व्यर्थ जाएगी !
मेरी जलती अस्थियों से भी सृष्टि प्रकाश पायेगी !!
जीस कलम का दुरउपयोग कर तुमने छला है
वो ही सत्य के हाथों से , तुमको कहीं सबला है !!

विसंगतियाँ, मतभेद छोड़, सुजन संगठित होने लगे हैं !
युवा आक्रोश सुमन को, सुबुद्धि से पिरोने लगे है !!
युक्ति , शक्ति, कूटनीती, सबका धर्म हेतू योगदान होगा !
प्रीथ्वीराज से प्रेरित थे, अब विष्णुगुप्त से पहचान होगा !!




बुद्धिजीवी

 पर के जीवन का रस खींच जीवन पाए जो

जीव विज्ञानं में परजीवी की संज्ञा पाये वो !

अनर्थ को बढ़ावा दे,भ्रम फैलाये जो

समाजविज्ञान में बुद्धिजीवी क्यों कहलाये वो?


बंध हो फँसी की सज़ा, ऐसे चल नहीं सकता

मनुष्यों के मूलाधिकार, ऐसे कोई छल नहीं सकता।

परन्तु, जो नशाग्रत और आतंकग्रस्त कर प्राण छीने

उसको हम मनुष्यों की श्रेणी में कैसे गिने?


किसी को धर्म प्रेम किसी को प्यारी जाती

किसी की वर्गों में बाँटकर, समाज तोड़ने की है ख्याति।

किसी को कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ चाहिए माल (धन),

खुद का शासन खुद पर कर लो, गणतंत्र का हाल।  


"नोटा " को अगर बहुमत आये, क्या गणतंत्र होगा फेल?

दो चार जितने वोट पड़ेंगे, उसमे ही चलेगा गिनती वाला खेल।

मैं कॉन्ट्रैक्ट अधिकारी, तू है ठेकेदार, अपना बन्दर बाँट का मेल 

नीलामी की शुरुवात हुई , पोस्टर छपे है, " भारतमाता सेल " !!