स्तब्ध है दिशाएं क्यों
वायु की गति थम गई ,
विराट हुई स्वप्निल आशाएं क्यों
क्यों नेत्र खगचक्षु पर जम गई।
क्या ये है अंधड़ के संकेत
क्या ये है परिवर्तन का प्रारम्भ कोई ?
या हो गया रंग रक्त का स्वेत
और नत मस्तक कर, पाल रहा मै भ्रम कोई ?
कुछ हिलडोल इस स्तब्धता में
एक घटना का पद धर जाती है।
स्थिरता के प्रवाह को तोड़कर,
कभी कभी प्रतिकार कर जाती है।
शुप्त होती अनल ज्योति की
क्या अंतिम चेष्ठा है ये?
या म्रित्यु पर्यन्त जलने को विवश
अतृप्त असीमित तेष्ठा है ये ?
वायु की गति थम गई ,
विराट हुई स्वप्निल आशाएं क्यों
क्यों नेत्र खगचक्षु पर जम गई।
क्या ये है अंधड़ के संकेत
क्या ये है परिवर्तन का प्रारम्भ कोई ?
या हो गया रंग रक्त का स्वेत
और नत मस्तक कर, पाल रहा मै भ्रम कोई ?
कुछ हिलडोल इस स्तब्धता में
एक घटना का पद धर जाती है।
स्थिरता के प्रवाह को तोड़कर,
कभी कभी प्रतिकार कर जाती है।
शुप्त होती अनल ज्योति की
क्या अंतिम चेष्ठा है ये?
या म्रित्यु पर्यन्त जलने को विवश
अतृप्त असीमित तेष्ठा है ये ?
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