जब बहन बेहया होने लगे
भाई नियत से नंगे होने लगे
जब ,डफली, ढोल, डमरू चीख सुनाते है
बाप के कंधे बेटियों के लाश रुलाते है।
तब जागो ज़मीर, आओ सुभाष बुलाते है।
जब जनवरी २६, या १५ अगस्त की रात तक
कुछ ही पल के लिए, देशभक्ति जस्बात हो !
जब गोमांस पर बवाल हो, देश प्रेम या राष्ट्रवाद सही, ऐसे सवाल हो
तब आप झूठे पत्तों में झुकते भूखे बच्चो से मुँह फेर गुज़र जाते हैं |
तब अंदर झाको अपने, देखो शुभाष बुलाते है।
जब किसान के गले का फंदा कसता जाये
जब गेहू महंगा और नेटवर्क फ़ोन का सस्ता पाए
जब सेंसेक्स की छलांगे ऊँची, और बेरोज़गारी धंदे का हाल सुनाते है।
जब भारत तोड़ने के गूंजते नारे, और हम दुबकके वन्देमातरम गाते है।
हमारी नपुंसकता पर क्रोधित हो, दे ललकार सुभाष बुलाते है।
जब गणतंत्र एक छलावा, स्वीतंत्राता परिहास लगे,
जब शहीदों के घर से निकली अर्ज़ी, दौलत के आगे बकवास लगे
जब हेमराज की सरकटी लाश घर आये, हम चाइनीज़ बत्तियों से चिता सजाते है।
खुद अपनों की मृत्यु का कारन बनकर, हम सेल्फी लेते, कभी जेब टटोलते रह जाते है
तेयोढ़ियाँ चढ़ जाती है क्रोध से, आखों में लेकर अंगारे देखो सुभाष बुलाते है।
भाई नियत से नंगे होने लगे
जब ,डफली, ढोल, डमरू चीख सुनाते है
बाप के कंधे बेटियों के लाश रुलाते है।
तब जागो ज़मीर, आओ सुभाष बुलाते है।
जब जनवरी २६, या १५ अगस्त की रात तक
कुछ ही पल के लिए, देशभक्ति जस्बात हो !
जब गोमांस पर बवाल हो, देश प्रेम या राष्ट्रवाद सही, ऐसे सवाल हो
तब आप झूठे पत्तों में झुकते भूखे बच्चो से मुँह फेर गुज़र जाते हैं |
तब अंदर झाको अपने, देखो शुभाष बुलाते है।
जब किसान के गले का फंदा कसता जाये
जब गेहू महंगा और नेटवर्क फ़ोन का सस्ता पाए
जब सेंसेक्स की छलांगे ऊँची, और बेरोज़गारी धंदे का हाल सुनाते है।
जब भारत तोड़ने के गूंजते नारे, और हम दुबकके वन्देमातरम गाते है।
हमारी नपुंसकता पर क्रोधित हो, दे ललकार सुभाष बुलाते है।
जब गणतंत्र एक छलावा, स्वीतंत्राता परिहास लगे,
जब शहीदों के घर से निकली अर्ज़ी, दौलत के आगे बकवास लगे
जब हेमराज की सरकटी लाश घर आये, हम चाइनीज़ बत्तियों से चिता सजाते है।
खुद अपनों की मृत्यु का कारन बनकर, हम सेल्फी लेते, कभी जेब टटोलते रह जाते है
तेयोढ़ियाँ चढ़ जाती है क्रोध से, आखों में लेकर अंगारे देखो सुभाष बुलाते है।
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